अनुच्छेद 32 : क्यों है सुर्ख़ियों में


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  • बीते सोमवार को मुख्य न्यायाधीश एस ऐ बोबडे की अध्यक्षता वाली एक सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने माना की यह व्यक्तियों को अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर करने के लिए हतोत्साहित कर रही है।
  • यह बात तब सामने निकलकर आयी जब सर्वोच्च न्यायालय में एक पत्रकार सिद्दीक कप्पन द्वारा उनकी रिहाई के दायर याचिका पर सुनवाई की जा रही थी।
  • पत्रकार सिद्दीक़ कप्पान को तीन अन्य व्यक्तियों के साथ हिरासत में ले लिया गया था जब वो उत्तर प्रदेश के हाथरस में सामूहिक बलात्कार और ह्त्या की घटना की रिपोर्टिंग के लिए जा रहे थे।
  • यह मूल अधिकारों के तहत संविधान में रखा गया एक अनुच्छेद है जिसके तहत हर नागरिक को संवैधानिक उपचार का अधिकार मुहैया कराया जाता है।
  • इसके अलावा संविधान में वर्णित मूल अधिकारों की रक्षा हेतु भी नागरिकों को सर्वोच्च न्यायलय जाने का अधिकार देती है।
  • इस अनुच्छेद के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के पास निर्देश या आदेश या रिट जारी करने का अधिकार होता है जिसमे बंदी प्रत्यक्षीकरण , परमादेश , प्रतिषेध , उत्प्रेक्षण और अधिकार पृच्छा शामिल हैं।
  • किसी भी मूल अधिकार का हनन होने की दशा में सर्वोच्च न्यायालय इनमे से किसी भी रिट को जारी करने का आदेश दे सकती है।
  • इस अनुच्छेद के तहत दिए गए अधिकार को किसी भी दशा में निलंबित नहीं किया जा सकेगा जब तक की संविधान में इसका कोई भी प्रावधान न दिया जाये।
  • अनुच्छेद 32 को संविधान के भाग 3 के तहत रखा गया है जिसमे कई और भी मूल अधिकारों को जगह दी गयी है जिसमे समानता का अधिकार ,भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतनत्रता, जीवन और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार भी शामिल हैं।
  • इनमे किसी भी अधिकार का उल्लंघन होने की ही दशा में इन्सान अनुच्छेद ३२ के तहत सर्वोच्च न्यायलय का दरवाज़ा खटखटा सकता है।
  • संविधान सभा में दिसंबर 1948 में जारी मूल अधिकारों की बहस के दौरान डा बी आर आंबेडकर ने कहा था की अगर संविधान में सबसे अहम् अनुच्छेद की बात की जाए जिसके बगैर संविधान का कोई वज़ूद नहीं होगा तो मैं बेशक इसी अनुच्छेद को वरीयता दूंगा।
  • यह अनुच्छेद संविधान की ह्रदय और आत्मा के सामान है। उन्होंने कहा की सर्वोच्च न्यायालय इस अनुच्छेद के माध्यम से यह सुनिश्चित करेगा की नागरिकों के मूल अधिकारों को न तो छीना जा सकेगा न ही उनका खंडन किया जा सकेगा जब तक की संविधान में इसके मातहत कोई बदलाव या संशोधन नहीं किया जाये।
  • ड्राफ्टिंग समिति के अन्य सदस्यों का कहना था की चूँकि यह अनुच्छेद मूल अधिकारों का उल्लंघन होने पर व्यक्ति को सर्वोच्च न्यायालय जाने का अधिकार देता है इसलिए यह अधिकार सभी मूल अधिकारों में सबसे ज़्यादा वरीयता रखता है।
  • संविधान सभा में इस बात पर भी बहस हुई की क्या इस अधिकार और बाकी मूल अधिकारों को आपातकाल के दौरान निलंबित या सीमित किया जा सकता है या नहीं।
  • आपातकाल के अलावा इस अनुच्छेद को बाकी दशाओं में न तो निलंबित किया जा सकेगा न ही इसे सीमित किया जा सकेगा।

उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय दोनों में ही मूल अधिकारों के उल्लंघन की दशा में रिट दायर की जा सकती है।

अनुच्छेद 32 के अनुसार उच्च और सर्वोच्च न्यायालय 5 तरह की रिट जारी करती है. उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय ऐसी रिट जारी कर सकते हैं.

उच्चतम न्यायालय पूरे देश के लिए रिट जारी कर सकता है. ये हैं पांच रिट…

बंदी प्रत्यक्षीकरण –

  • हिरासत में रखे गए किसी व्यक्ति को पेश करने से सम्बंधित रिट। इसके तहत व्यक्ति को तुरंत न्यायालय के सामने हाजिर करना होता है।
  • अपराध सिद्ध होने पर हिरासत बढ़ाई जा सकती है नही तो रिहा कर दिया जाता है।

परमादेश –

  • सरकारी अधिकारी के खिलाफ जारी की जाने वाली रिट। अगर सरकारी अधिकारी ने अपने कानूनी कर्तव्य का पालन न किया हो और इसकी वजह से किसी दूसरे के अधिकारों का हनन हुआ हो तो कोर्ट संबंधित व्यक्ति से इसके तहत पूछता है कि कोई कार्य उसने क्यों नहीं किया है?
  • लेकिन यह रिट निजी व्यक्ति, गैर संवैधानिक निकाय, विवेकानुसार लिए गए निर्णय, कांट्रैक्ट पर रखे गए लोगों, राष्ट्रपति और राज्यपालों और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों के खिलाफ जारी नहीं की जा सकती है।

प्रतिषेध –

  • यह केवल कोर्ट से संबंधित लोगों के खिलाफ ही जारी किया जाता है. जब उनके किसी को गलत तरीके से फायदा पहुंचाने की बात सामने आती है तो हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट इसका इस्तेमाल करती है।
  • इसका इस्तेमाल केवल विचाराधीन मामले में ही होता है यानि जब सुनवाई चल रही होती है। यह शीर्ष न्यायलय अधीनस्थ न्यायालय के खिलाफ जारी कर सकता है।

उत्प्रेषण –

  • यह भी प्रतिषेध के जैसा ही है. इसका मतलब होता है प्रमाणित होना या सूचना देना।
  • इसे उच्च न्यायालय अधीनस्थ न्यायालयों या प्राधिकरणों के खिलाफ ही जारी किया जाता था. लेकिन 1991 से इसे प्रशासनिक प्राधिकरणों के खिलाफ भी जारी किया जाने लगा है।
  • यह विधिक निकायों या निजी व्यक्तियों के विरुद्ध जारी नहीं किया जा सकता है. इसमें कोर्ट किसी सरकारी प्रक्रिया से जुड़ी पूछताछ करता है।

अधिकार पृच्छा –

  • यह सुनिश्चित करने के लिए जारी किया जाता है कि किसी पद पर बैठा हुआ सरकारी कर्मचारी उस पद पर बने रहने के योग्य भी है या नहीं?
  • जिसके खिलाफ यह रिट जारी हुई है, उसे साबित करना पड़ता है कि वह पद उसने गैरकानूनी तरीके से हासिल नहीं किया है।
  • जरूरी भी नहीं कि कोई पीड़ित व्यक्ति ही इस रिट को दायर करे, कोई भी जानकारी के लिए भी इसमें अपील कर सकता है।
  • पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन के मामले में न्यायालय ने पूछा की याची ने उच्च न्यायलय का दरवाज़ा क्यों नहीं खटखटाया।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने इसके मद्देनज़र केंद्र और उत्तर रदेश सरकार से भी जवाब माँगा है और इसकी सुनवाई इस हफ्ते के बाद की जाएगी।
  • पिछले हफ्ते एक दुसरे मामले में नागपुर आधारित एक व्यक्ति को तीन मामलों में हिरासत में लिया गया था। इस व्यक्ति पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ अपमानजनक बयान देने का आरोप था।
  • सर्वोच्च न्यायलय ने इस मामले में भी व्यक्ति को उच्च न्यायलय में अपील करने की सलाह दी थी।
  • तेलगु कवी वरवरा राव की पत्नी ने भी अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका के ज़रिये अपने पति को राहत दिए जाने की गुहार लगाई थी।
  • तेलगु कवी को साल 2018 से हिरासत में लिया गया है जिससे उनकी सेहत बिगड़ती जा रही है।
  • सर्वोच्च न्यायलय ने बॉम्बे उच्च न्यायालय को स्वास्थ्य कारणों के आधार पर ज़मानत याचिका पर जल्द से जल्द सुनवाई करने का निर्देश दिया था।
  • सर्वोच्च न्यायालय का कहना था की ये मामला उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आता है इसलिए उसे ही इस पर कार्रवाई करने का हक़ है।
  • रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य मामले में साल 1950 में सर्वोच्च न्यायालय ने पाया की अनुच्छेद 32 मूल अधिकारों को लागू करने में सबसे कारगर उपाय है।
  • इस तरह से सर्वोच्च न्यायलय को मूल अधिकारों का संरक्षक कहा जा सकता है
  • आपातकाल के दौरान अडिशनल डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट जबलपुर बनाम एस एस शुक्ल मामले में साल 1976 में सर्वोच्च न्यायलय ने कहा था अनुच्छेद 32 के तहत नागरिक न्यायालय की शरण लेने का अधिकार खो चुका है।
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