इजराइल, UAE और बहरीन के बीच अब्राहम समझौता


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चर्चा में क्यों ?

अमेरिका की मध्यस्थता में इजराइल संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन के बीच एक समझौता हुआ। इस समझौते को अब्राहम समझौता कहा जाता है। पिछले 26 सालों में यह पहली बार है जब अरब और इजराइल के बीच कोई शांति समझौता हुआ है

मुख्य बातें

पिछले 25 सालों से लेकर अभी तक इजराइल और अरब देशों के बीच केवल दो शांति समझौते हुए है। मिस्त्र पहला अरब देश था जिसने इजराइल के साथ 1979 में शांति समझौता कायम किया। जॉर्डन ने साल 1994 इजराइल के साथ शांति समझौते पर दस्तखत किये

क्या है अब्राहम समझौता

समझौते के मुताबिक़ UAE और इजराइल दूतावास स्थापित करेंगे और राजदूतों की अदलाबदली करेंगे। इसके अलावा UAE इजराइल के साथ पर्यटन व्यापार स्वास्थ्य क्षेत्र और सुरक्षा के क्षेत्र पर मिलकर काम करेंगे।
अब्राहम समझौते से दुनिया भर के मुस्लिमों के लिए इस्राल में मौजूद ऐतिहासिक स्थलों के दरवाज़े खुल जाएंगे। इसके अलावा मुस्लिम समुदाय जेरुसलम में मौजूद अल अक़्सा मस्जिद में इबादत कर सकेंगे। गौर तलब है की अल अक़्सा मस्जिद को इस्लाम धर्म का तीसरा सबसे पवित्र स्थल माना जाता है

इस्लाम में मेक्का में स्थित काबा को सबसे पाक माना जाता है जिसके बाद मदीना में पैग़म्बर की मस्जिद और अल अक़्सा मस्जिद क्रमशः दूसरी और तीसरी सबसे पाक जगहें मानी जाती हैं

इजराइल बहरीन और UAE का साथ आना इस बात का संकेत है की ये तीनों ही देश ईरान के बढ़ते प्रभुत्व को रोकना चाहते हैं। ईरान इन दोनों समझौतों को लेकर काफी चिंतित है।

अरब इजराइल रिश्ते

साल 1948 में इजराइल के आज़ाद होने के बाद इजराइल ने अपने पड़ोसी अरब देशों के साथ कई जंगें लड़ी। प्रवासी यहूदियों ने इजराइल को अपना देश माना जबकि अरब देशों ने इसे एक कब्ज़े के रूप में देखा।

समझौते का महत्व

इस समझौते से एक बात साफ़ तौर पर ज़ाहिर है की अरब देश धीरे खुद को फलस्तीनी मुद्दे से अलग कर रहे हैं। 1922 में लीग ऑफ़ नेशंस ने फलस्तीन को ऑटोमोन क्षेत्रों के तहत ब्रिटैन के प्रबंधन में रखा था। इन सभी ओटोमन क्षेत्रों ने धीरे धीरे आज़ाद देश का दर्ज़ा हासिल कर लिए सिवाय फलस्तीन के तीनों देशों के बीच इस समझौते के तहत राजनयिक रिश्ते कायम होंगे जिसका पूरे अरब क्षेत्र पर एक सकाररत्मक असर देखने को मिलेगा

इस समझौते से अमेरिका और UAE के रिश्तों में भी सुधार आएगा क्यंकि पूर्व में यमन युद्ध में शामिल होने की वजह से UAE की छवि पर नकारात्मक असर पड़ा था।

दक्षिण एशिया में इस समझौते से पकिस्तान पर भी दबाव बनेगा जिससे वो UAE के रास्ते पर चलते हुए फलस्तीन को समर्थन नहीं देगा। पाकिस्तान का पहले से ही कश्मीर के मुद्दे पर सऊदी अरब से विवाद है ऐसे में वो UAE से भी अपने रिश्ते खराब नहीं करना चाहेगा

इस समझौते के बाद अमेरिका के चुनाव में भी इजराइल समर्थक ईसाईयों का समर्थन ट्रम्प को मिल सकता है। इसके साथ साथ गल्फ देश जैसे ओमान और सऊदी अरब भी इसरेल के साथ मैत्री का हाथ बढ़ा सकता है

समझौते से क्या होंगी परेशानियां

86 फीसदी फलस्तीनियों का मानना है की इस समझौते से सिर्फ इस्राईल को फायदा होगा न की फलस्तीनियों को। इस समझौते से फलस्तीनियों की अपने देश की मांग को और दरकिनार किया जा सकता है। समझौते से इस क्षेत्र में शिया और सुन्नी में और फसाद बढ़ सकते है। सऊदी अरब और ईरान के बीच दुश्मनी का काफी लंबा इतिहास है। बरसों से पश्चिम एशिया में अस्थिरता की एक वजह सऊदी अरब और ईरान के बीच चल रहा शीतयुद्ध है। इसके अलावा शिया और सुन्नी के बीच पनपा ये विवाद पाकिस्तान ,नाइजीरिया और इंडोनेशिया के मुसलामानों में भी हिंसा को जन्म दे सकता है।

पश्चिम एशिया और भारत

पश्चिम एशिया अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में काफी जगह रखता है जिसकी वजह इसकी भौगोलिक स्थिति और महाद्वीपों और देशों से इसकी नज़दीकी है। यह क्षेत्र सामरिक रूप से काफी अहमियत रखता है जिसकी वजह यहां पाए जाने वाले ऊर्जा संसाधनों के अथाह भण्डार हैं। इसके अलावा यह क्षेत्र दुनिया के कई महत्वपूर्ण भागों को अपने व्यापारिक मार्गों के ज़रिये जोड़ता भी है।
यह क्षेत्र दुनिया का सबसे बड़ा तेल उत्पादक क्षेत्र है। यहाँ दुनिया के तेल उत्पादन का 34 फीसदी तेल उत्पन्न किया जाता है। यहाँ से कच्चे तेल का 45 फीसदी निर्यात किया जाता है जबकि यहां 48 फीसदी तेल के रिज़र्व मौजूद हैं। इस क्षेत्र में भारतियों की एक अच्छी खासी तादाद रहती है जिसकी वजह से यह भारत के लिए रेमिटेंस का काफी बड़ा स्त्रोत है।

भारत के इजराइल से हमेशा से अच्छे रिश्ते रहे हैं। भारत शुरू से ही इजराइल से रक्षा उपकरणों का आयत करता रहा है। लेकिन इस समझौते के बाद भारत UAE से भी अच्छे रिश्ते कायम कर सकता है। लेकिन ईरान के साथ रिश्तों को लेकर भारत को चिंता करनी पड़ सकती है क्यूंकि इस समय ईरान पर अमेरिका के प्रतिबंधों के अलावा पश्चिमी एशिया के देशों का भी दबाव है जिससे भारत को ईरान के साथ रिश्तों में फूंक फूंक कर कदम रखने होंगे।

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