जलवायु परिवर्तन और अल नीनो सदर्न ऑसिलेशन(ENSO)

- हाल ही में हुए एक अनुसंधान से ज्ञात हुआ है कि जलवायु परिवर्तन अत्यधिक और कई बार अल नीनो (El Nino) और ला नीना (La Nina) जैसी घटनाओं का कारण बन सकता है।
- दक्षिण कोरिया के सबसे तेज सुपर कंप्यूटरों में से एक का उपयोग करके इस पर हाल ही में एक अध्ययन किया गया था।
- वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ने से “भविष्य में इनसो की वजह से समुद्र की सतह के तापमान में बदलाव की दर कम हो सकती है।
- जल वाष्प के वाष्पीकरण के कारण भविष्य में अल नीनो की घटनाएं वातावरण में गर्मी को और अधिक तेज़ी से खो देंगी।
- भविष्य में पूर्वी और पश्चिमी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर के बीच तापमान का अंतर कम होगा, जिससे ENSO चक्र के दौरान तापमान चरम सीमा के विकास में बाधा उत्पन्न होगी।
- इसके अलावा, अनुमानित भविष्य में उष्णकटिबंधीय अस्थिरता तरंगें कमजोर हो सकती है, जो ला नीना घटना के विघटन का कारण बन सकता है।
- वे उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में होने वाली दो प्राकृतिक जलवायु घटनाएं हैं जो पूरी दुनिया में मौसम की स्थिति को प्रभावित करती हैं।
- जहाँ अल नीनो अवधि में मध्य और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में गर्म या समुद्र की सतह के तापमान में वृद्धि हो जाती है, वहीं ला नीना घटना के कारण पूर्वी प्रशांत महासागर में पानी सामान्य से अधिक ठंडा हो जाता है।
- साथ में, उन्हें ENSO या अल नीनो-दक्षिणी दोलन कहा जाता है।
- अल नीनो एक जलवायु पैटर्न है जो पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में सतही जल के असामान्य रूप से तापन की स्थिति को दर्शाता है।
- पश्चिमी व्यापारिक हवाएं भूमध्य रेखा पर कमज़ोर पड़ जाती हैं और वायु दाब में कमी के कारण सतही जल दक्षिणी अमेरिका के उत्तरी तट की और बहने लगता है।
- मध्य एवं पूर्वी प्रशांत क्षेत्र 6 माह से भी ज़्यादा गर्म रहते हैं और इस प्रकार अल नीनो की घटना का प्रारम्भ होता है।