क्या है यक्षगान (What is Yakshagana)

चर्चा में क्यों:
- हाल ही मे मंगलोर के एक यक्षगान समूह ने पूरी रात तक चलने वाले यक्षगान को एक अल्पावधि मे सीमित करने का निर्णय लिया है
- यक्षगान कर्नाटक के मुख्य नृत्यनाटिकाओं मे से एक है ।
यक्षगान क्या है:
- यक्षगान का शाब्दिक अर्थ है गण अर्थात लोग एवं यक्ष अर्थात प्रकृति मे पायी जाने वाली आत्माएँ ।
- यक्षगान एक पारंपरिक रंगमंच है, जिसे कर्नाटक राज्य में दक्षिण कन्नड़, उडुपी, उत्तर कन्नड़, शिमोगा और चिकमगलूर जिलों के पश्चिमी भागों और केरल के कासरगोड जिले में विकसित हुई हैं ।
- यह एक अनूठी शैली और रूप के साथ नृत्य, संगीत, संवाद, पोशाक, शृंगार और मंच तकनीकों को जोड़ती है।
- इसे कभी-कभी केवल “आटा” या आषा (जिसका अर्थ है “नाटक”) कहा जाता है।
- यह नाट्य शैली मुख्य रूप से कर्नाटक के तटीय क्षेत्रों में विभिन्न रूपों में पाई जाती है।
- दक्षिण कन्नड़ से तुलु नाडु क्षेत्र के कासरगोड तक, यक्षगान के रूप को थेन्कू थिट्टू कहा जाता है
- जबकि उत्तर की ओर उडुपी से उत्तर कन्नड़ तक इसे बडागा थिट्टू कहा जाता है।
- यक्षगान पारंपरिक रूप से शाम से भोर तक प्रस्तुत किया जाता है।
- इसकी कहानियाँ रामायण, महाभारत, भागवत और अन्य महाकाव्यों से हिंदू और जैन और अन्य प्राचीन भारतीय परंपराओं से ली गई हैं।
यक्षगान का उदय:
- यह विजयनगर साम्राज्य में उभरा और इसका मंचन सर्वप्रथम जक्कुला वरु द्वारा किया गया था।
- माना जाता है कि यक्षगान अपने वर्तमान स्वरूप में वैष्णव भक्ति आंदोलन से काफी प्रभावित था।
- यक्षगान को पहली बार उडुपी में माधवाचार्य के शिष्य नरहरितीर्थ द्वारा पेश किया गया था।
- नरहरितीर्थ कलिंग साम्राज्य में मंत्री थे। वह कुचिपुड़ी के संस्थापक भी थे।