कूडियाट्टम नृत्य


भारत विविधताओं का देश , उत्तर में पहाड़ों से घिरा तो दक्षिण में विशाल समुद्र पूरब में हरी भरी वादियां तो पश्चिम में असीम रेगिस्तान। जितनी विविधता भारत की ज़मीन में है शायद उतनी ही यहां के लोगों खान पान संस्कृति और पहनावे में है। यही विविधता यहां के गीत संगीत कलाकृति और नरतिय में भी दिखाई देती है। लेकिन यहाँ की कलाकृतियां और संस्कृति भी अपने भीतर यहां के अंचल को समेटे हुए है।

कूडियाट्टम नृत्य या ‘कोडियाट्टम नृत्य’ भारत की काफी पुरानी शैलियों में से एक है । केरल की परम्परा के मुताबिक़ राजा कुलशेखर वर्मन ने अपने ब्राह्मण मंत्री टोलन के साथ मिलकार इस नृत्य की विधा को मशहूर किया। इससे पहले मंच पर ज़्यादातर संस्कृत भाषा इस्तेमाल में लाई जाती थी लेकिन कुलशेखर वर्मन ने नृत्यनाटिकाओं में स्थानीय मलयालम भाषा का भी इस्तेमाल शामिल किया।

कुडियाट्टम एक लम्बे समय तक चलने वाली नृत्यनाटिका है।इस नर्तिनाटिका में जीवन के चार आश्रमों का समावेश होता है। कभी कभी यह नृत्यनाटिका हफ़्तों तक चलती है। दरसल में पहले के समय में जिन नाटकों में संस्कृत भाषा का प्रयोग संवाद और पार्श्व गायन के लिए होता था उसी में अब मलयालम भाषा का इस्तेमाल कर इसे आधुनिकता के रंग में ढाल दिया गया है। इस नाटक में मलयालम भाषा में हास्य और व्यंग्य को विनोद के साथ दर्शकों के सामने पेश किया जाता है। परिचय के अंत में नाटक की शरुआत होती है। नाटक में सभी पात्रों के संवाद लयबद्ध छंद के रूप में होते हैं। इन छंदों की भाषा संस्कृत होती है।

ये परम्परा केरल में तकरीबन दो हज़ार साल के आस पास पुराणी है। इसकी इसी प्राचीनता की वजह से कूडियाट्टम को युनेस्को ने दुनिया की सबसे पुराणी कला के तौर पर पहचाना है।आम तौर पर कूडियाट्टम नृत्य को ‘चाक्यार’ और ‘नंपियार’ समुदाय के के लोगों द्वारा पेश किया जाता है। इस कला का मंचन आम तौर पर ‘कूत्तंपलम’ नाम के मंदिर से जुडे नाट्यगृहों में होता है। कूडियाट्टम को पेश करना आसान नहीं है। इसके लिए एक लंबा अभ्यास और प्रशिक्षण ज़रूरी होता है।

क्या है कूडियाट्टम

कूडियाट्टम’ शब्द का मतलब है- ‘एक समूह में खेला जाने वाला नाटक या नृत्य नाटिका या अभिनय या संघटित नाटक या अभिनय’। कूडियाट्टम में अभिनय को वरीयता दी जाती है । भारत मुनि के नाट्यशास्त्र में अभिनय की चार विधाएँ बताई गयी है – ‘आंगिक’, ‘वाचिक’, ‘सात्विक’ और ‘आहार्य’। ये चारों रीतियाँ कूडियाट्टम में एक साथ जुड़ी हुई हैं। कूडियाट्टम में हाथ की मुद्राओं का इस्तेमाल करके एक ख़ास अभिनय किया जाता है। इसमें इलकियाट्टम, पकर्न्नाट्टम, इरुन्नाट्टम आदि विशेष अभिनय रीतियाँ भी अपनाई जाती हैं।कुडियाट्टम का मकसद सिर्फ मनोरंजन ही नहीं होता बल्कि इसके माध्यम से लोगों को एक सीख भी देने की कोशिश की जाती है। इसमें एक विदूषक की भूमिका काफी अहम्उ होती है क्यूंकि इसका काम नसीहत देना होता है। इस नसीहत में समाज में फ़ैली बुराइयों की तरफ इशारा होता है।

कैसे होता है कुडियाट्टम का मंचन

कुडियाट्टम का मंचन मंदिरों में मन्नत प्रसाद के तौर पर किया जाता है। अभिनय में जब कविता एक स्वर में बोली जाती है तो पहले हाथों के इशारों और प्रतीकों को दिखाया जाता है । नाटक में संगीत के शुरू होते ही शब्दों का मतलब का शरीर की भाव भंगिमाओं , नजरिए और चेहरे के हाव-भाव में बदल जाता है। कूडियाट्टम का मंचन एक मंदिर की तरह बनाए गए थियेटर में किया जाता है, जिसे ‘कोथामबम’ कहते हैं। मंच को फलों और नारियल के पेड़ों की सहायता से सजाया जाता है। एक धान के साथ बहता हुआ पोत भी मंच पर रखा जाता है। मंच पर नंबियार जाति के लोग ताम्बे का बड़ा ड्रम बजाते हैं , जिसे ‘मंजीरा’ कहते हैं। एक नंगियार महिला झांझ बजाती है और कभी-कभी छंद पाठ भी करती है। कूडियाट्टम में संगीत के तत्व को बहुत ही ज्यादा दबा दिया गया है। इस समय विशेष प्रभाव वाले ऑर्केस्ट्रा का आगमन हो रहा है। ऑर्केस्ट्रा शंख, पाइप और सींग के बने होते हैं।

कुडियाट्टम का मंचन

कूडियाट्टम में आम तौर पर संस्कृत के नाटकों को पेश किया जाता है। लेकिन इसमें पूरा नाटक नहीं पेश किया जाता। आमतौर पर इसमें एक अंक का ही अभिनय किया जाता है। अंकों को प्रमुखता दी जाने की वजह से आमतौर पर कूडियाट्टम अंकों के नाम से जाना जाता है। इसी वजह से विच्छिन्नाभिषेकांक, माया सीतांक, शूर्पणखा अंक आदि नाम काफी प्रचलित हो गये हैं। कूडियाट्टम के मंचन में संस्कृत नाटकों के नाम इस प्रकार हैं-

  • भास का ‘प्रतिमा’, ‘अभिषेकम्’, ‘स्वप्न वासमदत्तम’, ‘प्रतिज्ञायोगंधरायणम्’, ‘ऊरुभंगम’, ‘मध्यमव्यायोगम्’, ‘दूतवाक्यम’
  • श्रीहर्ष का ‘नागानन्द’
  • शक्तिभद्र का ‘आश्चर्यचूडामणि’
  • कुलशेखरवर्मन के ‘सुभद्राधनंजयम’, ‘तपती संवरणम्’
  • नीलकंठ का ‘कल्याण सौगंधिकम्’
  • महेन्द्रविक्रमन का ‘मत्तविलासम’
  • बोधायनन का ‘भगवद्दज्जुकीयम’
  • कुडियाट्टम में नाटक का एक पूरा अंक पेश करने के लिए तकरीबन आठ दिन का वक़्त लगता है। बीते समय में 41 दिन तक नाटक का मंचन हुआ करता था लेकिन आज के दौर में यह 8 दिनों तक ही होता है ।
  • कूत्तंपलम (नाट्यगृह) में भद्रदीप के सामने कलाकार नाटक का मंचन करते हैं।
  • कूडियाट्टम का सबसे प्रमुख वाद्य यंत्र मिष़ाव नामक बाजा है। नाटक के मंचन के दौरान इडक्का, शंख, कुरुम्कुष़ल, कुष़ितालम् आदि दूसरे वाद्यंत्र भी इस्तेमाल में लाये जाते हैं।
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