दल बदल विरोधी कानून(Anti-Defection Law): डेली करेंट अफेयर्स

- बीते मंगलवार को नामित सांसद स्वपन दास गुप्ता ने राज्य सभा से इस्तीफा दे दिया।
- हालांकि उनके कार्यकाल में अभी 1 साल का समय शेष रह रहा था।
- तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने इससे पहले स्वपन दास गुप्ता के राज्य सभा की सदस्यता को लेकर सवाल उठाये थे।
- इस के पीछे श्री दास गुप्ता के सांसद रहते हुए भाजपा के टिकट पर पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव में तारकेश्वर सीट से चुनाव लड़ने को वजह बताया जा रहा था।
- संविधान के निर्माण के समय संविधान सभा के सदस्यों ने संसद के उच्च सदन में नामित सदस्यों को के निर्वाचन समबन्धी प्रावधान पर कुछ नियम बनाये थे।
- इसके पीछे वजह ये थी की संसद के उच्च सदन में उन सदस्यों का निर्वाचन किया जाए जो चुनाव जीतने में असमर्थ हों लेकिन उन क्षेत्रों से समबन्ध रखते हों जो कला साहित्य मनोरंजन और समाज कार्यों से तालुक रखते हो।
- इसके पीछे राज्य सभा में होने वाली बहसों में ज्ञान और अनुभव का समावेश करना था।
- इसके चलते राज्य सभा में 12 नामित सदस्यों का प्रावधान किया गया।
- नामित सदस्यों के लिए जिन मानदंडों का निर्धारण किया गया उनमे उन्हें साहित्य विज्ञान कला और समाज सेवा जैसे क्षेत्रों से सम्बद्ध होना सबसे अहम् शर्त थी।
- भारत का राष्ट्रपति ऐसे व्यक्तियों को केंद्र की अनुशंसा पर राज्य सभा के लिए नामित करेगा।
- नामित सदस्यों को भी निर्वाचित सदस्यों की ही तरह अधिकार और अन्य सुविधाएं प्राप्त होंगी।
- हालांकि इन्हे राष्ट्रपति चुनाव में मतदान का अधिकार नहीं प्राप्त होगा।
- साल 1985 में संविधान में दसवीं अनुसूची जोड़ी गयी जिसे आम तौर पर दल बदल विरोधी कानून का दर्ज़ा दिया जाता है।
- हालांकि इसे पारित किये जाने के मद्देनज़र गतिविधियां 1967 के आम चुनावों के बाद ही शुरू हो गयीं थी जब देश में राजनीतिक स्थिरता का माहौल बनने लगा था।
- यह वो दौर था जब कई राज्यों में विधायकों द्वारा दल बदलने की वजह से राज्य सरकार गिरने लगी थी।
- 1985 में लाये गए इस संविधान संशोधन का मकसद उन सांसदों और विधायकों के दल बदली पर लगाम लगाना था जो अपने मूल दल को छोड़कर सरकार में अस्थिरता का कारण बन रहे थे।
- इस संशोधन के तहत उन सांसदों और विधायकों की सदस्यता रद्द किये जाने और उनके मंत्री बनने पर रोक लगाने सम्बन्धी दंड का प्रावधान किया गया।
- इस कानून में उन परिस्थितियों का भी ज़िक्र किया गया है जिसके तहत उन सांसदों पर कानूनी प्रक्रिया के तहत दंड का प्रावधान किया गया है। इस कानून में 3 तरह के प्रावधानों का ज़िक्र है जिसके मद्देनज़र सांसद दल बदलते है।
- पहली श्रेणी में उन सदस्यों को शामिल किया गया है जो किसी राजनीतिक दल के टिकट पर चुनाव जीतने के बाद स्वेच्छा से उस दल को छोड़ देते हैं या फिर पार्टी के खिलाफ सदन में मतदान करते हैं।
- दूसरी संभावना के तहत जब एक सांसद जिसने निर्दलीय सीट पर चुनाव जीता है चुनाव के बाद किसी राजनैतिक दल में शामिल हो जाता है।
- इन दोनों ही संभावनाओं में सांसद की सदन में सदस्यता ख़त्म हो जाती है।
- तीसरी संभावना के तहत नामित सदस्यों को नामित किये जाने के 6 महीने के भीतर किसी राजनैतिक दल का चुनाव करना होता है।
- अगर इन छह महीनों में वह किसी दल का चुनाव कर लेता है तो उसे उस दल की सदस्यता दे दी जाती है अन्यथा 6 महीने के बाद अगर वह किसी दल में शामिल होता है तो उसकी सदस्यता ख़त्म हो जाती है।
- श्री दासगुप्ता मामले में यही हुआ। साल 2016 में उन्हें राजयसभा सदस्य के रूप में नामित किया गया था।
- हालांकि नामांकन के 6 महीने के भीतर उन्होंने किसी भी दल की सदस्यता नहीं ग्रहण की थी और इस तरह से उनकी सदस्यता को दल बदल विरोधी कानून के तहत चुनौती दी गयी।
- बीते कुछ दिनों में दल बदल कानून के दायरे में कई और चीज़ों को शामिल करने पर भी विवाद रहा है
- हालांकि न्यायालयों ने समय समय पर इससे जुड़े फैसलों में ये कहा है की यह सांसदों या विधायकों का विशेषाधिकार होगा और उनका किसी दल विशेष में शामिल होना उसके लिए प्रचार करना या इसकी रैलियों में शामिल होने के फैसले को चुनौती देना भी दल बदल विरोधी कानून का हिस्सा होगा इस पर अभी विवाद है।
- किसी भी चुनी हुई सरकार की स्थिरता और स्थायित्व का निर्णय लोक सभा में किया जाता है जहां सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को लाकर उसकी स्थिरता को संकट में डाला जा सकता है।
- हालांकि दल बदल विरोधी कानून संसद के दोनों सदनों लोक सभा और राज्य सभा के सदस्यों पर समान रूप से लागू होता है। हालांकि पूर्वर्ती कानून में नामित सदस्यों को बाहर निकालने का प्रावधान नहीं था।