क्या होती हैं सरकारी प्रतिभूतियां (What are Government Securities)

- भारतीय रिज़र्व बैंक ने बीते शुक्रवार को कहा की यह छोटे निवेशकों को सरकारी प्रतिभूतियों के व्यापार हेतु मंच की सीधी सुविधा प्रदान करेगा।
- खुदरा निवेशक आर बी आई में अब अपने गिल्ट अकाउंट सीधे खोल सकेंगे और सरकारी प्रतिभूतियों में सीधे व्यापार कर सकेंगे
- सरकारी प्रतिभूतियां या जी-सेक(G-Secs) अनिवार्य रूप से एक सरकार द्वारा जारी ऋण उपकरण हैं। ये प्रतिभूतियां केंद्र सरकार और भारत की राज्य सरकारों दोनों द्वारा जारी की जा सकती हैं।
- जब आप ऐसे विकल्पों में निवेश करते हैं, तो आप आम तौर पर नियमित ब्याज आय प्राप्त करते हैं। चूंकि इन निवेश उत्पादों को सरकार द्वारा समर्थन दिया जाता है, इसलिए उनके साथ जुड़े जोखिम लगभग उपेक्षित है।
- यदि आप ऐसे कम जोखिम वाले उत्पादों में निवेश करने में रुचि रखते हैं, तो भारत में कई प्रकार की सरकारी प्रतिभूतियां हैं जिनसे आप चुन सकते हैं।
- उन्हें मोटे तौर पर चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है, अर्थात् भंडार बिल (टी–बिल), नकद प्रबंधन बिल (सीएमबी), दिनांकित जी–सेक्स, और राज्य विकास ऋण (एसडीएल)।
- ट्रेजरी बिल या टी बिल केवल भारत की केंद्र सरकार द्वारा जारी किए जाते हैं। वे अल्पकालिक धन बाजार उपकरण हैं, जिसका अर्थ है कि उनकी परिपक्वता अवधि 1 वर्ष से कम है।
- भंडार बिल वर्तमान में तीन अलग–अलग परिपक्वता अवधि के साथ जारी किए जाते हैं: 91 दिन, 182 दिन, और 364 दिन। टी बिल वित्तीय बाजारों में उपलब्ध अन्य प्रकार के निवेश उत्पादों के काफी अलग हैं।
- अधिकांश वित्तीय साधन आपको अपने निवेश पर ब्याज का भुगतान करते हैं। भंडार बिल, दूसरी ओर, जो आमतौर पर शून्य कूपन प्रतिभूतियों के रूप में जाना जाता है।
- ये प्रतिभूतियां आपको अपने निवेश पर कोई ब्याज नहीं देती हैं। हालांकि, वे छूट पर जारी किए जाते हैं और परिपक्वता की तारीख को अंकित मूल्य पर भुनाया जाता है।
- उदाहरण के लिए, 182 दिवसीय टी–बिल 100 रुपये के अंकित मूल्य के साथ 96 रुपये पर जारी किया जा सकता है, 4 रुपये की छूट के साथ, 100 रुपये के अंकित मूल्य पर भुनाया जा सकता है।
- नकद प्रबंधन विधेयक (सीएमबी) भारतीय वित्तीय बाजार के लिए अपेक्षाकृत नए हैं। उन्हें केवल वर्ष 2010 में भारत सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा पेश किया गया था।
- सीएमबी भी शून्य–कूपन प्रतिभूतियां हैं और भंडार बिल के काफी समान हैं। हालांकि, परिपक्वता अवधि दो प्रकार की सरकारी प्रतिभूतियों के बीच अंतर का एक प्रमुख बिंदु है।
- नकद प्रबंधन विधेयक (सीएमबी) 91 दिनों से कम परिपक्वता अवधि के लिए जारी किए जाते हैं, जो उन्हें अत्यंत अल्पावधि निवेश विकल्प बना देता है।
- किसी भी अस्थायी नकदी प्रवाह आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भारत सरकार द्वारा सीएमबी रणनीतिक रूप से उपयोग किया जाता है।
- निवेशक के दृष्टिकोण से, नकद प्रबंधन बिलों का उपयोग अल्पकालिक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए किया जा सकता है।
- दिनांकित जी-सेक(G-Secs) भारत में विभिन्न प्रकार की सरकारी प्रतिभूतियों में से एक हैं।
- टी–बिल और सीएमबी के विपरीत, जी-सेक(G-Secs) दीर्घकालिक धन बाजार उपकरण हैं जो 5 साल से शुरू होने और 40 साल तक सभी तरह के कार्यकालों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करते हैं।
- ये उपकरण या तो एक निश्चित या एक अस्थायी ब्याज दर के साथ आते हैं, जिसे कूपन दर भी कहा जाता है।
- कूपन दर आपके निवेश के अंकित मूल्य पर लागू होती है और आपको ब्याज के रूप में अर्ध वार्षिक आधार पर भुगतान की जाती है।
- छोटे निवेशक अप्रत्यक्ष रूप से सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें म्यूच्यूअल फण्ड में निवेश करना होता है या कुछ बीमा कंपनियों के द्वारा जारी पालिसी खरीदना होता है।
- सीधे निवेश को बढ़ावा देने के लिए हाल के सालों ,में सरकार और आर बी आई ने कई सारे कदम उठाये हैं। खुदरा निवेशकों को उनके डीमैट खातों के ज़रिये सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करने की अनुमति है।
- इसके लिए स्टॉक एक्सचेंज खुदरा निवेशकों के लिए सुविधा केंद्र की तरह काम करते हैं।
- सरकारी प्रतिभूतियों का बाजार आम तौर पर संस्थागत निवेशकों जैसे बैंक म्यूच्यूअल फण्ड और बीमा कंपनियों के प्रभुत्व में रहता है।
- ये सारी इकाइयां 5 करोड़ रुपये से अधिक के लॉट में व्यापार करती हैं।
- इस तरह देखा जाये तो द्वितीयक बाजार में छोटे निवेशकों के लिए कोई तरलता नहीं है। छोटे निवेशक आम तौर पर कम कीमत का व्यापार करते हैं लेकिन यहां छोटे लॉट की सुविधा नहीं है।
- आसान भाषा में समझें तो सरकारी प्रतिभूतियों का व्यापार खुदरा निवेशकों के बीच ज़्यादा लोकप्रिय नहीं है।
- हालांकि अभी इस घोषणा के बारे में ज़्यादा पुख्ता जानकारी नहीं उपलब्ध है फिर भी आर बी आई की यही मंशा है की सरकारी प्रतिभूतियों के व्यापार को खुदरा निवेशकों के बीच भी लोकप्रिय बनाया जाये।
- इसके लिए आर बी आई ने लोगों को इ कुबेर में खाता खोलने की सुविधा प्रदान कर दी है। इससे सरकारी प्रतिभूतियों को छोटे निवेशकों के बीच बाजार मुहैया कराने में आसानी होगी।
- आर बी आई सरकार के ऋणों का प्रबंधन करती है। आने वाले वित्तीय वर्ष में सरकार की बाजार से 12 लाख करोड़ रुपये ऋण लेने की योजना है।
- जब सरकार बाजार से इतना पैसा उठाती है तो पैसे की कीमत आम तौर पर बढ़ती है।
- इसकी बढ़ती कीमतों को नीचे लाने की ज़िम्मेदारी सरकार और आर बी आई की होती है।
- ऐसा करने के लिए निवेशकों का दायरा बढ़ाने और उनके लिए सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद आसान बनाने की ज़रुरत है।
- बैंक में फिक्स्ड डिपाजिट की तरह सरकारी प्रतिभूतियां कर से मुक्त नहीं होती हैं।
- इन्हे आम तौर पर सबसे सुरक्षित निवेश माना जाता है क्यूंकि इनके पीछे सरकार का समर्थन होता है।
- यही वजह है की इसमें नुक्सान की आशंका न के बराबर होती है।
- हालांकि इसकी ब्याज दरों में परिवर्तन होने की वजह से इसमें जोखिम भी होता है।
प्रिलिम्स फैक्ट्स:
आर बी आई गवर्नर : शक्तिकांत दास
कार्यकाल: 3 वर्ष
स्थापना: भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के तहत 1 अप्रैल, 1935
राष्ट्रीयकरण: वर्ष 1949 में
गठन:
सरकारी निदेशक
पूर्ण:कालिक : गवर्नर और अधिकतम चार उप गवर्नर
प्रमुख कार्य
- मौद्रिक प्रधिकारी (Monetary Authority)
- मुद्रा जारीकर्त्ता (Issuer of Currency)
- विदेशी मुद्रा प्रबंधक (Manager of Foreign Exchange)
- वित्तीय प्रणाली का विनियामक और पर्यवेक्षक (Regulator and Supervisor of the Financial System)
स्थानीय बोर्ड
देश के चार क्षेत्रों – मुंबई, कोलकाता, चेन्नै और नई दिल्ली से एक-एक
सदस्यता :
प्रत्येक में पांच सदस्य
केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त
चार वर्ष की अवधि के लिए