भारत के हिमालय में हींग की खेती


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  • भारत की ज़्यादातर रसोइयों में हींग एक बेहद आम मसाला है। इसकी अहमियत इस बात से लगायी जा सकती है की हर साल भारत सरकार तकरीबन 600 करोड़ रुपये की हींग का आयात करती है।
  • अपनी तेज़ गंध के लिए जाने जाना वाला ये मसाला कई तरह की आयुर्वेदिक औषधियों में भी इस्तेमाल होता है।
  • पालमपुर स्थित CSIR से सम्बद्ध हिमालयी जैव संसाधन संस्थान के वैज्ञानिकों ने भरतिया हिमालय की चोटियों पर हींग उगाने का मिशन बनायाहै।
  • पिछले हफ्ते इस मिशन के तहत हिमाचल प्रदेश की लाहौल घाटी में कवरिंग गाँव में इसकी पहली शाखा को रोपा गया।
  • एपिएसी कुल का ये पौधा फेरूला असाफोएटिडा के नाम से जाना जाता है। यह एक सदाबहार पौधा है जिसकी जड़ों से और राइज़ोम से चिचिपा पदार्थ या राइसिन निकाला जाता है।
  • हींग के पौधे में ज़्यादातर पोषक पदार्थ इसकी मोटी मांसल जड़ों में मौजूद रहते हैं।
  • हींग देसी तौर पर ईरान और अफ़ग़ानिस्तान ,में पाया जाता है। ईरान और अफ़ग़ानिस्तान से ये पूरी दुनिया में पहुंचाया जाता है।
  • ये आम तौर पर ठंडी और शुष्क रेगिस्तान जैसी जगहों पर पनपता है।
  • जहाँ भारत में इसका ज़्यादातर इस्तेमाल रसोईयों में होता है वहीं युरोपिया देशों में इसका इस्तेमाल दवाएं बनाने ,में किया जाता है।
  • भारत में हींग का उत्पादन नहीं होता है। भारत सरकार सालाना 1200 टन हींग का आयात करती है। इसकी कीमत तकरीबन 600 करोड़ रुपये आती है।
  • भारत हींग का आयात ईरान अफ़ग़ानिस्तान और उज़्बेकिस्तान से करता है।
  • 1963 से 1989 के दरमियान भारत ने हींग के बीज खरीदने की कोशिश की थी। ये कहना है नेशनल ब्यूरो ऑफ़ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज का जो नै दिल्ली में स्थित है। हालांकि इससे जुड़े कोई भी दस्तावेज़ नहीं मौजूद हैं।
  • 2017 में IHBT ने प्रायोगिक तौर पर हींग को भारतीय हिमालय की पहाड़ियों में उगाने का मसौदा रखा था।
  • शोध के लिए हींग के बीजों को ईरान से आयात किया गया था जिन्हे NBPGR के संरक्षण में रखा गया था। यहां इन बीजों पर कई सारे प्रयोग किये गए। प्रयोग के दौरान इन बीजों को किसी भी तरह के संक्रमण से बचाने के लिए इन्हे कारण्टीन रखा गया था।
  • इसे पूरी तरह से कीटों के हमले से भी बचा कर रखा गया था ताकि इन्हे रोपते समय इनकी वजह से कोई दिक्कत न आये। इस पूरी प्रक्रिया में तकरीबन 2 महीने का समय लग गया।
  • भारतीया कृषि अनुसंधान परिषद् से सारी विनियमन सम्बन्धी इज़ाज़त मिलने के बाद इन्हे साल 2018 से IHBT की देखरेख में शोध के दायरे में रखा गया है।
  • IHBT के पालमपुर स्थित केंद्र में इन बीजों का अध्ययन किया गया जिसके बाद इन पर प्रयोगशाला में कई सारे प्रयोग हुए ये देखने के लिए की इनमे अंकुरण होता है या नहीं।
  • वैज्ञानिकों के लिए सबसे बड़ी चुनौती ये थी की एक लम्बे आरसे तक इन बीजों को निष्क्रिय अवस्था में रखने के बाद भी इन बीजों में अंकुरण महज़ 1 फीसदी की दर से हुआ।
  • इस निष्क्रियता से निपटने के लिए वैज्ञानिकों ने इन बीजों को कुछ रसायनों के प्रभाव में रखा।
  • इन सारे प्रयासों के बाद ईरान के अलग अलग इलाकों से इकठ्ठा किये गए बीजों में अंकुरण शुरू हुआ।
  • इस साल जून में CSIR के संस्थान ने हिमाचल प्रदेश के कृषि मंत्रालय के साथ एक मसौदे पर दस्तखत किये जिसके तहत इस प्रयोग को अगले 5 सालों तक राज्य में अंजाम दिया जाएगा।
  • हींग का पहला पौधा IHBT के उच्च ऊँचाई जैव विज्ञानं केंद्र में बड़ा हुआ था इसे 15 अक्टूबर को लाहुल घाटी के कवरिंग गाँव में लगाया गया था।
  • कृषि मंत्रालय ने घाटी में ऐसी 4 जगहों की पहचान की है जहां इसकी खेती की जा सकती हैं। इस क्षेत्र में हींग के बीजों को 7 किसानों के बीच बांटा गया। हींग के उगने के लिए सबसे मुफीद जलवायु ठंडी और शुष्क जलवायु होती है।
  • हींग का पौधा अधिकतम 35 से 40 डिग्री के बीच तापमान झेल सकता है जबकि सर्दियों के दौरान ये -4 डिग्री के तापमान में भी खड़ा रहता है। इससे ज़्यादा कठिन परिस्थितियों में ये पौधा निष्क्रिय हो जाता है।
  • ऐसे इलाके जहां रेतीली मिट्टी या बलुई मिट्टी पायी जाती है और बारिश 200 मिलीमीटर से ज़्यादा नहीं होती को हींग के खेती के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है।
  • हिमाचल प्रदेश के सबसे ऊँचाई पर पड़ने वाले ज़िलों में कुछ शुरुआती प्रयोग किये गए। इन ज़िलों में मंडी किन्नौर कुल्लू मनाली और पालमपुर आते हैं।
  • इसके अलावा शोधकर्ताओं ने अपने प्रयोगों को लद्दाख और उत्तराखंड में भी अंजाम देने की योजना बनायी है। संस्थान के माध्यम से क्षेत्रीय किसानों को हींग उगाने के लिए जानकारी और कौशल मुहैया कराया जाएगा।
  • कई सारे अध्ययन और शोधों से पता चला है की हींग में कई औषधीय गुण होते हैं।
  • हींग आम तौर पर पेट से जुड़े रोगों और विकारों , अस्थमा और ब्रोंकाइटिस के लिए फायदेमंद होती है। मासिक धर्म के दौरान होने वाले रक्तस्राव और दर्द का इलाज करने के लिए हींग का इस्तेमाल किया जाता है।
  • इसके अलावा अनियमित गर्भ के दौरान भी इसका इस्तेमाल आम है। हींग को आम तौर पर नयी मांओं को दिया जाता है।
  • अभी हींग की खेती के बारे में कुछ भी कहना मुनासिब नहीं होगा। जानकारों का कहना है की हींग के पेड़ को करीबन 5 साल का वक़्त लगता है जब उसकी जड़ों से ये चिपचिपा पदार्थ निकला जा सकता है।
  • इस अक्टूबर को हींग का पहला पौधा लगाया गया है। वैज्ञानिकों को अगले 5 सालों तक इसे मिट्टी मौसम और अन्य दशाओं में इसकी निगरानी करनी होगी।
  • इस साल के आखिर तक हींग की खेती को 1 हेक्टेयर इलाके में करने का लक्ष्य तय किया गया है और अगले 5 सालों के दौरान इसे बढ़ाकर 300 हेक्टेयर तक करना है।
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