ऑफिसियल सीक्रेट्स एक्ट


हाल ही में दिल्ली पुलिस ने एक वरिष्ठ पत्रकार राजीव शर्मा को गिरफ्तार किया है। राजीव शर्मा पर चीन के लिए जासूसी करने के आरोप थे। राजीव शर्मा के साथ एक चीनी महिला और नेपाल के एक नागरिक को भी गिरफ्तार किया गया है। दिल्ली पोइस ने इन तीनों को आधिकारिक गुप्त नियम या ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट 1923 के तहत गिरफ्तार किया है। चीनी महिला और नेपाली नागरिक पर राजीव शर्मा को हवाला के ज़रिये पैसे पहुंचाने का आरोप है। माना जा रहा है की राजीव शर्मा ,चीनी महिला और नेपाली नागरिक भारत में एक सेल कंपनी बनाकर रुपयों का लेनदेन करते थे। राजीव शर्मा ने साल 2010 से 2014 तक चीनी सरकार के मुखपत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ के लिए भी लेख लिखे थे। उनके लेख देखकर एक चीनी खुफिया एजेंसी के अधिकारी माइकल ने उनसे लिंकडिन एकाउंट के जरिए उनसे संपर्क साधा था। इसके बाद राजीव शर्मा चीनी ख़ुफ़िया एजेंसियों को भारतीय सेना से जुड़ी जानकारियां मुहैय्या करा रहा था।

क्या है ऑफिसियल सीक्रेट्स एक्ट

ऑफिसियल सीक्रेट्स एक्ट दरसल में अंग्रेज़ों के ज़माने का क़ानून है। पहली बार इस कानून को साल 1889 में लाया गया था। उस समय इसे लाने का मकसद कई सारे ऐसे अखबारों पर बंदिशें लगाना था जिनके ज़रिये अंग्रेज़ों के खिलाफ मुहिम चलाने का काम किया जा रहा था। ये अखबार कई भाषाओँ में छापा करते थे। साल 1904 में लार्ड कर्ज़न ने इसमें कुछ बदलाव कर इसे और सख्त बना दिया। साल 1923 में फिर से इसका नया स्वरुप सामने आया। नए अधिसूचित कानून में इसे देश के प्रशासन में आने वाले सभी मामलों में जहाँ गोपनीयता बरती जानी चाहिए वहाँ लागू किया गया।

मोटे तौर पर यह दो मामलों के लिए बनाया गया था जिसके तहत जासूसी करना जिसे इस कानून की धारा 3 में शामिल किया गया है और दूसरा सरकार की गोपनीय जानकारियां किसी शत्रु को देना जिसे इस कानून की धरा 5 के तहत रखा गया है। गोपनीय जानकारियों में आधिकारिक कोड ,पासवर्ड ,स्केच योजना ,लेख नोट दस्तावेज़ या कोई जानकारी हो सकती है। धारा 5 के गोपनीय जानकारी देने वाले और गोपनीय जानकारी हासिल करने वाला दोनों सज़ा के हक़दार होंगे।

सूचना के अधिकार और ऑफिसियल सीक्रेट एक्ट में किसे ज़्यादा तवज़्ज़ो

सूचना के अधिकार की धारा 22 में के प्रावधान के मुताबिक़ इसे और कानूनों जिसमे ऑफिसियल सीक्रेट एक्ट भी शामिल है के मुकाबले ज़्यादा तवज़्ज़ो दी जाएगी। इसलिए अगर ऑफिसियल सीक्रेट एक्ट में जानकारी को लेकर कोई भी असंगति पायी जाती है तो इसकी जगह सूचना का अधिकार कानून ले लेगा। हालांकि आर टी आई एक्ट की धारा 8 और 9 के मुताबिक़ सरकार किसी भी जानकारी से इंकार कर सकती है। हालांकि अगर ऑफिसियल सीक्रेट एक्ट की धारा 6 के चलते सरकार किसी भी जानकारी को गोपनीय करार देती है तो इस दस्तावेज़ को सूचना के अधिकार के दायरे से बाहर रखा जा सकता है।

क्या ऑफिसियल सीक्रेट एक्ट में बदलाव की कोशिशें की गयीं ?

साल 1071 में विधि आयोग ने ऑफिसियल सीक्रेट एक्ट के मद्देनज़र बदलाव की कोशिशें करनी शुरू की। राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ अपराध नाम की अपनी रिपोर्ट में कहा की महज़ किसी दस्तावेज़ को गोपनीय बता देने से उसे ऑफिसियल सीक्रेट एक्ट के दायरे में नहीं लाया जा सकता। हालांकि विधि आयोग ने इस कानून में किसी भी बदलाव की अनुशंसा नहीं की।

साल 2006 में दुसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने ऑफिसियल सीक्रेट एक्ट को ख़त्म करने की सिफारिश की और कहा की इसे राष्ट्रीय सुरक्षा कानून में ऑफिसियल सीक्रेट का एक अध्याय बनाकर उसमे इसके प्रावधानों को शामिल कर देना चाहिए। एक प्रजातांत्रिक समाज में जहां पारदर्शिता का होना बेहद ज़रूरी है ऐसे में ऑफिसियल सीक्रेट एक्ट का होना कटाई सही नहीं है। प्रशासनिक सुधार आयोग ने 1971 के विधि आयोग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा की राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े सभी कानूनों को एक साथ लाने के लिए एक अम्ब्रेला एक्ट होना चाहिए।

साल 2015 में सरकार ने ऑफिसियल सीक्रेट एक्ट के प्रावधानों पर विचार करने के लिए एक समिति का गठन किया। इस समिति ने 16 जून 2017 को अपनी रिपोर्ट कैबिनेट सचिवालय को सौंपी। इस रिपोर्ट में ऑफिसियल सीक्रेट एक्ट को और पारदर्शी बनाने और इसे सूचना के अधिकार कानून के अनुरूप बनाने की सिफारिश की गयी थी।

कौन से ऐसे ख़ास वाकये हैं जहां ऑफिसियल सीक्रेट एक्ट का प्रयोग हुआ ?

ऑफिसियल सीक्रेट एक्ट को लेकर अभी तक सबसे पुराना और सबसे लंबा आपराधिक मामला साल 1985 में चला कुमार नारायण का मामला है। प्रधानमंत्री कार्यालय और राष्ट्रपति भवन के सचिवालय के 12 पूर्व कर्मचारियों को इस मामले में 2002 में 10 साल क़ैद की सज़ा सुनायी गयी थी। इन कर्मचारियों को फ्रेंच , पोलिश और जर्मन दूतावासों के अधिकारियों के साथ आपराधिक साज़िश का दोषी पाया गया था। इन कर्मचारियों ने इन अधिकारियों को सुरक्षा सम्बन्धी आधिकारिक सूचनाएं गोपनीय दस्तावेज़ और जानकारियां दी थी। इन दस्तावेज़ों में कई मंत्रालयों और खुफिया विभागों से जुडी जानकारियां मौजूद थी।

दूसरा काफी चर्चा में रहा मामला था इसरो से जुड़ा जासूसी मामला जिसमे एक वैज्ञानिक एस नम्बि नारायण को दोषी करार दिया गया। नम्बि नारायण पर पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी को राकेट और क्रायोजेनिक तकनीकी से जुडी जानकारियां भेजने का आरोप लगा था। नम्बी नारायण पर ऑफिसियल सीक्रेट एक्ट के तहत आपराधिक मुकद्दमा दर्ज़ किया गया। हालांकि बाद में सी बी आई ने एक रिपोर्ट दी जिसमे नम्बी नारायण को बेक़सूर पाया गया और उन्हें रिहा कर दिया गया।

सबसे ताज़ा प्रकरण था साल 2018 में आया माधुरी गुप्ता मामला जिसमे दिल्ली की एक अदालत ने पूर्व राजनयिक माधुरी गुप्ता को सज़ा सुनायी थी। माधुरी गुप्ता इस्लामाबाद के उच्चायोग में कार्यरत थी। उन पर पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आई एस आई को खुफिया जानकारियां देने का आरोप था। उन्हें 3 साल की जेल हुई थी।

एक और मामले में कश्मीर टाइम्स के पत्रकार इफ्तिखार गिलानी को साल 2002 में गिरफ्तार किया गया था और उन पर ऑफिसियल सीक्रेट एक्ट के तहत मुकद्दमा चलाया गया।

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