काम करने का अधिकार


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  • काम करने का अधिकार यह एक ऐसा विषय है जिस पर दुसरे विश्व युद्ध के बाद से ही सबसे ज़्यादा चर्चा हुई है।
  • मानवधिकार घोषणा पात्र में भी काम करने के अधिकार का ज़िक्र किया गया है। भारत में संविधान में कहीं भी काम करने के अधिकार का ज़िक्र नहीं है।
  • हालांकि महात्मा गांधी राष्ट्रिया ग्रामीण रोज़गार अधिनियम के तहत काम करने के अधिकार को वरीयता दी गयी है।
  • यह काम के अधिकार की तरफ एक अच्छा कदम है लेकिन यह भी कानूनी अधिकार है संवैधानिक नहीं।
  • इस अधिनियम के तहत कोई भी व्यक्ति काम न मिलने की सूरत में राज्य को ज़िम्मेदार ठहरा सकता है और उससे बेरोज़गारी भत्ते की मांग कर सकता है।
  • लेकिन अगर मनरेगा क़ानून में कोई संशोधन किया जाए या सरकार इसे ख़त्म कर दे तो काम करने का अधिकार भी ख़त्म हो जाएगा।
  • जबकि दुनिया के ज़्यादातर देशों में बाजार आधारित अर्थव्यस्था को अपनाया गया है तो ऐसे में क्या काम करने के अधिकार की बात करना लाज़मी है।
  • भारत जैसे विकासशील देश में बढ़ती जी डी पी के मुकाबले नौकरियां घाट रही हैं और भारत का विकास भी ज़्यादातर ऐसा रहा है जिसमे लगातार नौकरियां घाट रही हैं।
  • इसके अलावा मज़दूरों को भी बाजार के नियमों के आधार पर चलना पड़ता है।
  • ऐसी स्थति में जब नौकरियां लगातार घाट रही हैं काम करने का अधिकार बेहद ज़रूरी हो गया है।
  • यहां काम करने के अधिकार को सिर्फ बेरोज़गारी या नौकरियों की उपलब्धता के आधार पर नहीं देखना चाहिए ।
  • पिछले कुछ दशकों के दौरान देखा गया है की सिर्फ विकास ही रोज़गार के मौके नहीं मुहैया कराता है। कभी कभी विकास लोगों से उनकी रोज़ी रोटी छीन भी लेता है।
  • विकास को देखते हुए लोगों को रोज़गार देना भी काफी अहम् है इसे देखते हुए काम करने का अधिकार कानूनी अमली जामा पहनाना बेहद ज़रूरी हो गया है।
  • कई सारे अहम् सवाल नीति निर्माताओं के लिए ऐसे हैं जिन पर ख़ास तवज़्ज़ो नहीं दी जाती है।
  • मिसाल के तौर पर जी डी पी में बढ़ोत्तरी हथियारों के बनने उसकी बिक्री से भी आती है और दवाओं के बनने से भी।
  • इसी तरह हम प्रति व्यक्ति जी डी पी वृद्धि की बात बहुत कम ही करते है आम तौर पर पूरी जी डी पी में ही बढ़त की बात की जाती है। जी डी पी में ये बढ़त बिना लोगों को रोज़गार दिए भी आ सकती है।
  • ऐसे कई देश हैं जहां मनाव संसाधान की बेहद कमी है लेकिन इसके बावजूद वहाँ की जी डी पी काफी ज़्यादा है।
  • भारत जैसे देश में अगर मशीनों के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाता है तो इसकी वजह से बेरोज़गारी में कमी देखने को ज़रूर मिलेगी।
  • लेकिन इस तरह के विकास का भी क्या मतलब जो लोगों से उनकी रोज़ी रोटी छीन ले।
  • इसके लिए सबसे पहला तरीका है विकेन्द्रित शहरी रोज़गार और प्रशिक्षण को बढ़ाए देना।
  • गाँवों में जिस तरह से मनरेगा ने लोगों को रोज़गार के मौके दिलाये हैं वैसे ही शहरों में भी ऐसी व्यवस्था बनायी जानी चाहिए।
  • इस तरह के रोज़गार के मौके लोगों में एक तरह की सम्मान की भावना को भी बढ़ावा देंगे।
  • गरिमापपूर्ण कार्य सिर्फ काम करने के लिए मुफीद ज़रूरतों से नहीं आता है बल्कि इसके तहत मज़दूरों को सम्मानजनक मज़दूरी और काम करने के घंटों को भी नियमित करना होगा।
  • इसके लिए सरकार को श्रम सम्बन्धी कई सुधार करने पड़ेंगे जिससे इन सभी चीज़ों को विनियमित किया जा सके।
  • शहरी रोज़गार और प्रशिक्षण को बढ़ावा देने के लिए शरीर स्थानीय निकाय कुछ तय सरकारी संस्थानों जैसे स्कूलों को और विश्वविद्यालयों को पूर्व नियोजित कार्यों के लिए जॉब वाउचर्स दे सकते हैं।
  • ये संस्थान इन वाउचर्स को पहले से निर्धारित कामों जैसे स्कूल की इमारत में पुताई करना , टूटे हुए फर्नीचर की मरम्मत करना जैसे कामों के लिए इस्तेमाल में ला सकते हैं।
  • लेकिन इसके लिए महज़ राजनैतिक इच्छाशक्ति ही नहीं बल्कि वित्तीय संसाधनों की भी ज़रुरत पड़ेगी।
  • भारत के हर नागरिक को उसकी पसंद के अनुसार रोजी-रोटी कमाने का अधिकार है। संविधान में इसे ‘काम के अधिकार’ के तहत रखा गया है।
  • संविधान में अनुच्छेद 41 से लेकर 43 में राज्य को सभी नागरिकों के लिए काम का अधिकार, न्यूनतम मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा, मातृत्व राहत और एक गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार मुहैया कराने की बात की गयी है ।
  • रोजी-रोटी कमाने का हक भारतीय संविधान में मूल अधिकारों के रूप में लोगों को दिया गया है। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों में भी आर्थिक, समाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों के साथ रोजी-रोटी कमाने के हक को सुरक्षित किया गया है।
  • मानवाधिकार पर घोषित सार्वभौम प्रस्ताव (UDHR) के अनुसार किसी भी व्यक्ति को काम करने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।
  • 4 अगस्त 2005 में महाराष्ट्र सरकार और शोभा विट्ठल के केस में सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि ‘काम करने का हक’ आर्टिकल 21 में निहित ‘जीवन के अधिकार’ के तहत सुरक्षित है।
  • संविधान के अनुच्छेद 41 में लिखा है, बेरोजगारी में, बुढ़ापे में, बीमारी में, विकलांगता की स्थिति में लोगों को उनकी जरूरत के मुताबिक काम करने का हक, शिक्षा का हक और सामाजिक सहायता का हक दिया जाता है।
  • काम करने के हक को संविधान में मौलिक अधिकारों की श्रेणी में रखा गया है, जिसमें इसे कानूनी मान्यता दी गई है।
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